रामपूर बुशैहर से लगभग 36 कि. मी. दूरी पर माँ भीमाकाली के चरणों में बसा सराहन गाँव भारत वर्ष में मशहूर है । शिमला जिले व किन्नौर जिले की सीमा पर बसे इस खुबसूरत स्थान की चर्चा इतिहास के पन्नों पर भी की गई है । पौराणिक समय में यह स्थान शौणितपुर के नाम से जाना जाता था। रामपूर बुशैहर से पहले यह स्थान बुशैहर के नाम से भी जाना जाता था व बुशैहरी राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। इससे पूर्व बुशैहरी राजा कामरू किला में वास करते थे जोकि किन्नौर जिले में स्थित है। उसके पश्चात राजा छत्र सिहं ने सराहन को ग्रीष्म ऋतु की राजधानी धोषित किया। 1550 में राजा राम सिंह ने सराहन से अपनी राजधानी रामपूर लाई । सराहन बुशैहर का इतिहास जितना चर्चित है वास्तव में सराहन पर्यटन की दृष्टि से भी मनमोहक है । इस स्थान की खुबसूरती को माँ भीमाकाली का अत्यन्त सुन्दर मंदिर चार चाँद लगा देता है ।
51 शक्ति पीठ में एक शक्ति पीठ सराहन में भी है ।ऐसा माना जाता है कि सत्ती के शरीर के अंगो मे से कान इस स्थान पर गिरा था । पौराणिक कथा यह भी है कि यहाँ भीमगिरि नामक संत ने काफी समय तक तपस्या की थी। उसके पास एक लाठी हुआ करती थी , जिसमें भीमाकाली को स्थापित किया गया था । तपस्या करने के बाद जब वह यहाँ से जाने लगा तो वह लाठी इतनी भारी हो गई कि उसे उठा न सका । भीमगिरि के आग्रह पर राजा ने देवी को अपनी कुलजा मानकर वहीं स्थापित कर दिया । तब से बुशैहर रियासत का राजवंश इसे अपनी कुल देवी मानने लगा। राजा देवी सिंह ने सराहन में माता के लिए सुन्दर मंदिर बनाकर परिसर में लांकड़ा वीर को भी स्थापित किया।
इसके पश्चात 1962 में नए मंदिर में मूर्ति की स्थापना की गई। मंदिर पहाड़ी स्थापत्य शैली से बनाया गया है। मंदिर के कपाट चांदी से मड़े हुए हैं। चांदी के पतरों पर हिंदु देवी - देवताओं की मूर्तियाँ बनाई गई है। मंदिर की दीवारे काठकुणी शैली में लकड़ी और पत्थर की चिनाई से की गई है । देवी की मूल प्रतिमा अभी भी पुराने मंदिर में ही स्थापित है। आम आदमी इस मूर्ति के दर्शन नहीं कर सकता। केवल राजवंश के व्यक्ति इस पुराने मंदिर में जा सकते है। तथा पूजा पाठ कर सकते है।
यहाँ से श्रीखंड कैलाश का नजारा दिखाई देता है। वर्ष भर लाखों पर्यटक यहाँ की सुन्दर वादियों का लुत्प उठाने आते है। विशेषकर मार्च से नवंबर तक का समय यहाँ धूमने के लिय बहुत सही है। क्योंकि उसके पश्चात यहाँ बर्फ पड़ जाती है और तापमान शून्य से नीचे गिर जाता है।
एक बार सराहन घूमने जरूर आए व इस स्थान के सौंदर्य का रोमांचक दृश्य देखें। www.sarahanbushahr.com
51 शक्ति पीठ में एक शक्ति पीठ सराहन में भी है ।ऐसा माना जाता है कि सत्ती के शरीर के अंगो मे से कान इस स्थान पर गिरा था । पौराणिक कथा यह भी है कि यहाँ भीमगिरि नामक संत ने काफी समय तक तपस्या की थी। उसके पास एक लाठी हुआ करती थी , जिसमें भीमाकाली को स्थापित किया गया था । तपस्या करने के बाद जब वह यहाँ से जाने लगा तो वह लाठी इतनी भारी हो गई कि उसे उठा न सका । भीमगिरि के आग्रह पर राजा ने देवी को अपनी कुलजा मानकर वहीं स्थापित कर दिया । तब से बुशैहर रियासत का राजवंश इसे अपनी कुल देवी मानने लगा। राजा देवी सिंह ने सराहन में माता के लिए सुन्दर मंदिर बनाकर परिसर में लांकड़ा वीर को भी स्थापित किया।
इसके पश्चात 1962 में नए मंदिर में मूर्ति की स्थापना की गई। मंदिर पहाड़ी स्थापत्य शैली से बनाया गया है। मंदिर के कपाट चांदी से मड़े हुए हैं। चांदी के पतरों पर हिंदु देवी - देवताओं की मूर्तियाँ बनाई गई है। मंदिर की दीवारे काठकुणी शैली में लकड़ी और पत्थर की चिनाई से की गई है । देवी की मूल प्रतिमा अभी भी पुराने मंदिर में ही स्थापित है। आम आदमी इस मूर्ति के दर्शन नहीं कर सकता। केवल राजवंश के व्यक्ति इस पुराने मंदिर में जा सकते है। तथा पूजा पाठ कर सकते है।
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Bahut khoob..
ReplyDeleteThanku
DeleteBauth khoob... G Awesome .. Keep it up dear.. God bless you
ReplyDeleteThanku so much
DeleteAwesome..... Keep it up
ReplyDeleteAwesome ...👌👌👌
ReplyDeleteThanku ..
DeleteWah billi keep it up nice
ReplyDeleteThanku dost
DeleteNice 👌
ReplyDeleteThanku
DeleteNice informative article. Wish I could read more like this with a detailed route map and stay facilities. Good work. Kudos.
ReplyDeleteThanku sir i will take care about this information so that people can easily know about route and all things
DeleteVery good keep going
ReplyDeleteThanku sir
DeleteAdorable... place..re real
ReplyDeleteYes it is
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