यूं तो पहाड़ों में ऐसी कई शख्सियत हैं , जिनका नाम इतिहास के पन्नों में लिखा गया है। बात सुन्दरता की हो या महान पुरूषों की, पहाड़ों पर हमेशा से प्रकृति की असीम अनुकंपा रही है। हिमाचल प्रदेश में एक ऐसे महान पुरूष ने जन्म लिया ,जिन्होनें जनता के दिलो पर राज़ किया। वे है़ राजा वीरभद्र सिहं । रामपूर रियासत से ताल्लुकात रखने वाले राजा वीरभद्र सिहं राजपरिवार की 122वीं पीड़ी है। जिनका जन्म 23जून 1934 में सराहन में हुआ। वे राजा पदम सिहं व उनकी नौवीं पत्नी शान्ति देवी के पुत्र हैं।
राजा पदम सिहं अपने पुत्र वीरभद्र सिहं व राजेंद्र सिहं के साथ
राजा वीरभद्र सिहं की स्कूली शिक्षा उस समय के सबसे प्रतिष्ठित स्कूल बिशप काॅटन स्कूल से हुई। उस समय बिशप काॅटन स्कूल में केवल बड़े परिवारों के बच्चे दाखिला लिया करते थे। ऐसे में शिमला की एक रियासत का राजकुमार पढने आए तो स्कूल का नाम क्यों न बढ़े। आज की तारीख में भी बिशप कॉटज स्कूल का वह रजिस्ट्र तमाम लोगों को दिखाया जाता है जिसमें 5359 नंबर दाखिले के सामने लिखा है वीरभद्र सिहं । उसके पश्चात वीरभद्र सिहं ने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से स्नातकोत्तर किया।
इसी बीच 1954 में उनकी शादी जुब्बल की राजकुमारी रत्तनाकुमारी से हुई । उस समय राजा वीरभद्र सिहं की उम्र केवल 20 वर्ष थी। उनका सपना था कि वे इतिहास विषय के प्रोफेसर बने। परन्तु भाग्य उन्हें लोक सेवा व जनहित कार्य के लिए पुकार रही थी। दिल्ली में ज्वाहर लाल नेहरू से उनकी मुलाकात हुई और उन्होनें समझाया कि इतिहास के प्रोफेसर बनने से अच्छा है इतिहास बनाना। उसके पश्चात 1959 में जब इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कॉग्रेस की अध्यक्षा बनी तो उन्होनें राजा वीरभद्र सिहं का मार्ग दर्शन किया।
राजा वीरभद्र सिहं दिल्ली से वापिस लौट आए । 1962 में पहला लोक सभा चुनाव लड़ा व महासू सीट जीत कर राजनीतिक क्षेत्र में अपना सफर शुरू किया। 1983 में वे पहली बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बनें। उसके पश्चात 1985 से 1990 , 1993 में एक बार फिर सियासत उनके नाम रही । 1998 से 2003 व 2003 से 2007 तक हिमाचल प्रदेश की जनता ने उन्हें मुख्यमंत्री पद पर बिठाया। 2012 में फिर एक बार उन्होनें मुख्यमंत्री पद हासिल किया । वे 6 बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 5 बार लोक सभा सदस्य व 8 बार विधायक रह चुके हैं।
हिमाचल की जनता के दिलो में आज भी राजा वीरभद्र सिहं राज करते है । उनका दूसरा विवाह रानी प्रतिभा सिहं से हुआ । राजा वीरभद्र सिहं की 5 संतान हैं।
यशवंत सिहं परमार के बाद वे एक ऐसे नेता है जिन्हें हिमाचल की जनता ने इतना प्रेम दिया है। हि.प्र. के चहुमुखी विकास में वीरभद्र सिहं का सबसे बड़ा योगदान है।
आंखों में जनहित का सपना लिए उन्होंनें पूरा जीवन राजनीतिक क्षेत्र में बीता दिया। 84 वर्ष की आयु होने के बावजूद सत्ता से उनका मोह नहीं छूटा है। वे जनता के हितों के लिय सदैव खड़ें हैं।
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राजा पदम सिहं अपने पुत्र वीरभद्र सिहं व राजेंद्र सिहं के साथ
इसी बीच 1954 में उनकी शादी जुब्बल की राजकुमारी रत्तनाकुमारी से हुई । उस समय राजा वीरभद्र सिहं की उम्र केवल 20 वर्ष थी। उनका सपना था कि वे इतिहास विषय के प्रोफेसर बने। परन्तु भाग्य उन्हें लोक सेवा व जनहित कार्य के लिए पुकार रही थी। दिल्ली में ज्वाहर लाल नेहरू से उनकी मुलाकात हुई और उन्होनें समझाया कि इतिहास के प्रोफेसर बनने से अच्छा है इतिहास बनाना। उसके पश्चात 1959 में जब इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कॉग्रेस की अध्यक्षा बनी तो उन्होनें राजा वीरभद्र सिहं का मार्ग दर्शन किया।
राजा वीरभद्र सिहं दिल्ली से वापिस लौट आए । 1962 में पहला लोक सभा चुनाव लड़ा व महासू सीट जीत कर राजनीतिक क्षेत्र में अपना सफर शुरू किया। 1983 में वे पहली बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बनें। उसके पश्चात 1985 से 1990 , 1993 में एक बार फिर सियासत उनके नाम रही । 1998 से 2003 व 2003 से 2007 तक हिमाचल प्रदेश की जनता ने उन्हें मुख्यमंत्री पद पर बिठाया। 2012 में फिर एक बार उन्होनें मुख्यमंत्री पद हासिल किया । वे 6 बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 5 बार लोक सभा सदस्य व 8 बार विधायक रह चुके हैं।
हिमाचल की जनता के दिलो में आज भी राजा वीरभद्र सिहं राज करते है । उनका दूसरा विवाह रानी प्रतिभा सिहं से हुआ । राजा वीरभद्र सिहं की 5 संतान हैं।