Friday, November 23, 2018

एक राजा जिसने हिमाचल की जनता के दिलो पर राज़ किया

यूं तो पहाड़ों में ऐसी कई शख्सियत हैं , जिनका नाम इतिहास के पन्नों में लिखा गया है। बात सुन्दरता की हो या महान पुरूषों की, पहाड़ों पर हमेशा से प्रकृति की असीम अनुकंपा रही है। हिमाचल प्रदेश में एक ऐसे महान पुरूष ने जन्म लिया ,जिन्होनें जनता के दिलो पर राज़ किया। वे है़ राजा वीरभद्र सिहं । रामपूर रियासत से ताल्लुकात रखने वाले राजा वीरभद्र सिहं राजपरिवार की 122वीं पीड़ी है। जिनका जन्म 23जून 1934 में सराहन में हुआ। वे राजा पदम सिहं व उनकी नौवीं पत्नी शान्ति देवी के पुत्र हैं।
राजा पदम सिहं अपने पुत्र वीरभद्र सिहं व राजेंद्र सिहं के साथ

राजा वीरभद्र सिहं की स्कूली शिक्षा उस समय के सबसे प्रतिष्ठित स्कूल बिशप काॅटन स्कूल से हुई। उस समय बिशप काॅटन स्कूल में केवल बड़े परिवारों के बच्चे दाखिला लिया करते थे। ऐसे में शिमला की एक रियासत का राजकुमार पढने आए तो स्कूल का नाम क्यों न बढ़े। आज की तारीख में भी बिशप कॉटज स्कूल का वह रजिस्ट्र तमाम लोगों को दिखाया जाता है जिसमें 5359 नंबर दाखिले के सामने लिखा है वीरभद्र सिहं । उसके पश्चात वीरभद्र सिहं ने दिल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से स्नातकोत्तर किया।
इसी बीच 1954 में उनकी शादी जुब्बल की राजकुमारी रत्तनाकुमारी से हुई । उस समय राजा वीरभद्र सिहं की उम्र केवल 20 वर्ष थी।  उनका सपना था कि वे इतिहास विषय के प्रोफेसर बने। परन्तु भाग्य उन्हें लोक सेवा व जनहित कार्य के लिए पुकार रही थी। दिल्ली में ज्वाहर लाल नेहरू से उनकी मुलाकात हुई और उन्होनें समझाया कि इतिहास के प्रोफेसर बनने से अच्छा है इतिहास बनाना। उसके पश्चात 1959 में जब इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कॉग्रेस की अध्यक्षा बनी तो उन्होनें राजा वीरभद्र सिहं का मार्ग दर्शन किया।
राजा वीरभद्र सिहं दिल्ली से वापिस लौट आए । 1962 में पहला लोक सभा चुनाव लड़ा व महासू सीट जीत कर राजनीतिक क्षेत्र में अपना सफर शुरू किया। 1983 में वे पहली बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री बनें। उसके पश्चात 1985 से 1990 , 1993 में एक बार फिर सियासत उनके नाम रही । 1998 से 2003 व 2003 से 2007 तक हिमाचल प्रदेश की जनता ने उन्हें मुख्यमंत्री पद पर बिठाया। 2012 में फिर एक बार उन्होनें मुख्यमंत्री पद हासिल किया । वे 6 बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 5 बार लोक सभा सदस्य व 8 बार विधायक रह चुके हैं।
हिमाचल की जनता के दिलो में आज भी राजा वीरभद्र सिहं राज करते है । उनका दूसरा विवाह रानी प्रतिभा सिहं से हुआ । राजा वीरभद्र सिहं की 5 संतान हैं।


यशवंत सिहं परमार के बाद वे एक ऐसे नेता है जिन्हें हिमाचल की जनता ने इतना प्रेम दिया है। हि.प्र. के चहुमुखी विकास में वीरभद्र सिहं का सबसे बड़ा योगदान है।


आंखों में जनहित का सपना लिए उन्होंनें पूरा जीवन राजनीतिक क्षेत्र में बीता दिया। 84 वर्ष की आयु होने के बावजूद सत्ता से उनका मोह नहीं छूटा है। वे जनता के हितों के लिय सदैव खड़ें हैं।

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Tuesday, November 20, 2018

रामपूर बुशैहर में बसा एक और बुशैहर

रामपूर बुशैहर से लगभग 36 कि. मी. दूरी पर माँ भीमाकाली के चरणों में बसा सराहन गाँव भारत वर्ष में मशहूर है । शिमला जिले व किन्नौर जिले की सीमा पर बसे इस खुबसूरत स्थान की चर्चा इतिहास के पन्नों पर भी की गई है । पौराणिक समय में यह स्थान शौणितपुर के नाम से जाना जाता था। रामपूर बुशैहर से पहले यह स्थान बुशैहर के नाम से भी जाना जाता था व बुशैहरी राजाओं की राजधानी हुआ करती थी। इससे पूर्व बुशैहरी राजा कामरू किला में वास करते थे जोकि किन्नौर जिले में  स्थित है। उसके पश्चात राजा छत्र सिहं ने सराहन को ग्रीष्म ऋतु की राजधानी धोषित किया। 1550 में राजा राम सिंह ने सराहन से अपनी राजधानी रामपूर लाई । सराहन बुशैहर का इतिहास जितना चर्चित है वास्तव में सराहन पर्यटन की दृष्टि से भी मनमोहक है । इस स्थान की खुबसूरती को माँ भीमाकाली का अत्यन्त सुन्दर मंदिर चार चाँद लगा देता है ।

 51 शक्ति पीठ में एक शक्ति पीठ सराहन में भी है ।ऐसा माना जाता है कि सत्ती के शरीर के अंगो मे से कान इस स्थान पर गिरा था । पौराणिक कथा यह भी है कि यहाँ भीमगिरि नामक संत ने काफी समय तक तपस्या की थी। उसके पास एक लाठी हुआ करती थी , जिसमें भीमाकाली को स्थापित किया गया था । तपस्या करने के बाद जब वह यहाँ से जाने लगा तो वह लाठी इतनी भारी हो गई कि उसे उठा न सका । भीमगिरि के आग्रह पर राजा ने देवी को अपनी कुलजा मानकर वहीं स्थापित कर दिया । तब से बुशैहर रियासत का राजवंश इसे अपनी कुल देवी मानने लगा। राजा देवी सिंह ने सराहन में माता के लिए सुन्दर मंदिर बनाकर परिसर में लांकड़ा वीर को भी स्थापित किया।


इसके पश्चात 1962 में नए मंदिर में मूर्ति की स्थापना की गई। मंदिर पहाड़ी स्थापत्य शैली से बनाया गया है। मंदिर के कपाट चांदी से मड़े हुए हैं। चांदी के पतरों पर हिंदु देवी - देवताओं की मूर्तियाँ बनाई गई है। मंदिर की दीवारे काठकुणी शैली में लकड़ी और पत्थर की चिनाई से की गई है । देवी की मूल प्रतिमा अभी भी पुराने मंदिर में ही स्थापित है। आम आदमी इस मूर्ति के दर्शन नहीं कर सकता। केवल राजवंश के व्यक्ति इस पुराने मंदिर में जा सकते है। तथा पूजा पाठ कर सकते है।
यहाँ से श्रीखंड कैलाश का नजारा दिखाई देता है। वर्ष भर लाखों पर्यटक यहाँ की सुन्दर वादियों का लुत्प उठाने आते है। विशेषकर मार्च से नवंबर तक का समय यहाँ धूमने के लिय बहुत सही है। क्योंकि उसके पश्चात यहाँ बर्फ पड़ जाती है और तापमान शून्य से नीचे गिर जाता है।

एक बार सराहन घूमने जरूर आए व इस स्थान के सौंदर्य का रोमांचक दृश्य देखें। www.sarahanbushahr.com

Friday, November 9, 2018

अंर्तराष्ट्रीय लवी मेला - संधि से मेले तक का सफर

मेले व त्यौहार किसी भी स्थान की संस्कृति की पहचान होती है| हिमाचल प्रदेश में कई ऐतिहासिक मेले मनाए जाते है| जो यहाँ की सभ्यता व संस्कृति को दर्शाता है| रामपुर बुशैहर में भी कई मेले व त्यौहार मनाए जाते हैं| जिसमें अंर्तराष्ट्रीय लवी मेला प्रमुख हैं !
 इतिहास को खगोला जाए तो यह मेला 300 वर्ष पुराना है| इस मेले का आरंभ तिब्बत व रामपुर की संधि से हुआ|उस समय रामपुर, तिब्बत व किन्नौर व्यापार की दृष्टि से जुड़े थे|लवी मेला में तिब्बत के साथ साथ अफगानिस्तान व उजोकिस्तान के व्यापारी कारोबार करने के लिय आते थे| वे विशेष रूप से ड्राई फ्रुट,  ऊन,पशम व भेड़-बकरियों सहित धोड़ों को लेकर आया करते थे| बदले में व्यापारी रामपुर से नमक, गुड़ औऱ अन्य राशन लेकर जाते थे| ऊन से बने उत्पादकों की खरीद -फरोख्त भी होती थी|
 राजा केहर सिहं ने तिब्बत के साथ व्यापार को लेकर संधि की थी| इस व्यापारिक मेले में किन्नौर, लाहौल स्पीति व कुल्लु से लोग पैदल चलकर आया करते थे| ग्रामीण क्षेत्रों से लोग इस मेले में पहुँच कर वर्ष भर का सामान लेकर जाया करते थे|
समय परिवर्तन हुआ और 1985में हि.  प्र.  के मुख्यमंत्री राजा वीरभद्र सिहं ने इस मेले को अंंर्तराष्ट्रीय लवी मेला धोषित किया | उसके पश्चात व्यापारिक दृष्टि से इस मेले में काफी बदलाव आए| मेले का स्वरूप बदल चुका है|

                                                  11नवंबर से 14 नवंबर के इस लवी मेला में दूरदराज से व्यापारी आते है|इसके साथ साथ लवी मेला में सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है|जिसमें देश के जाने माने कलाकार शिरकत करते है|साथ ही स्थानीय लोक- कलाकार भी भाग लेते है|11 नवंबर से शुरू होने वाले लवी मेला में केवल 1 दिन शेष है| प्रशासन द्वारा पूरी तैयारियाँ कर दी गई है| अगले blog में आपको इस वर्ष की लवी मेला का हाल बताएंगें |
stay tuned
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Wednesday, November 7, 2018

रामपुर बुशैहर - इतिहास राजाओं का

रामपुर बुशैहर|  मैंने नदियों से सिखा है , बस बहते रहना । राह में चाहे कितनी भी रूकावटें क्यों न हो फ़िर भी अपनी धुन में चलते रहना। सफर नामा का सफर शुरू ही हुआ है नदियों को देख कर । हिमाचल प्रदेश की राजधानी शिमला के छोटे से कस्बे रामपुर में जन्म होने के पश्चात् नदियों से प्रेम भाव व लगाव अधिक हो भी क्यों न रामपुर बसा ही सतलुज नदी के किनारे है। 
रामपुर के इतिहास की चर्चा करें तो इसकी कहानी काफ़ी बङी है।कई राजाओं नें यहाँ शासन किया। चलिए आपको विस्तारपूर्वक रामपुर के इतिहास से रूबरू करवातें हैं । 
शिमला जिला के काफ़ी पुराने स्थान रामपुर बुशैहर की स्थापना श्री कृष्ण के पुत्र प्रदयुम्न द्वारा की गई। इसके पश्चात १४१२में राजा धनबार द्वारा इस रियासत पर शासन चलाया गया । समय परिवर्तन के साथ राजपूतों ने इस रियासत पर शासन किया । 
1) राजा छतर सिहं रामपुर रियासत के 110वें राजा थे । उस समय रामपुर बुशैहर के नाम से जाना जाता था।
2) राजा कल्यान सिहं रामपुर के 112वें राजा थे।
3)113वें राजा के रूप में राजा केहरी सिहं ने शासन किया ।
4) 1708 में राजा विजय सिहं ने जन्म लिया और वह बुशैहर के 114वें राजा बने।
5) राजा उदय सिहं (1708-1725) बुशैहर के 115वें राजा बनें।
6) राजा राम सिहं (1725-1761) बुशैहर के 116वें राजा बनें।
7) (1761-1785) राजा उदार सिहं ने शासन किया ।
8) राजा उगर सिहं  बुशैहर के 118वें राजा बनें।
9)राजा महेन्द्र सिहं (1815-1850) रामपुर के शासक बनें।
10) राजा शमशेर सिहं का जन्म 1838 में हुआ । उन्होंनें (1850-1887) तक शासन किया । और ५अगस्त 1914 में मृत्यु हो गई।
11) राजा रधुनाथ सिहं ने 1887-1898 तक शासन किया। 
12) राजा पद्म सिहं का जन्म 1873 में हुआ । उन्होंनें 1914-1947 तक शासन किया । राजा पद्म सिहं की 9 पत्नियाँ थी। 
13) राजा वीभद्र सिहं का जन्म 23 जून 1934 में हुआ। 1962,1967,1972 और 1980 में वे लोक सभा के सदस्य रहें । 1983में वे पहली बार हि. प्र. के मुख्यमंत्री बनें। वे 6 बार हिमाचल के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। रामपुर बुशैहर में आज भी उन्हें राजा की मान्यता दी जाती है। 

बुशैहर रियासत में समय परिवर्तन के साथ राजाओं नें कई राज्य के साथ संधि की तिब्बत व बुशैहर की संधि लगभग 300 वर्ष पुरानी है। जिसे आज के समय में लवी मेला के नाम से जाना जाता है। पुराने समय में बुशैहर और तिब्बत के बीच घोङो व्यपार  हुआ करता था । अगले blog में आपको बुशैहर की संधि से रूबरू करवाएंगें । और लवी मेला का महत्त्व बताएगें । 
stay tund


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रामपुर विधानसभा क्षेत्र में नई सड़कों का निर्माण व अधूरे पड़े विकास कार्यों को गति देना रहेगी प्राथमिकता - नंदलाल

रामपुर विधानसभा क्षेत्र में नई सड़कों का निर्माण व अधूरे पड़े विकास कार्यो को गति देना मेरी प्राथमिकता रहेगी. यह कहना है रामपुर के नवनिर्वाच...